गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012
मंगलवार, 8 जून 2010
overtime
ओवर टाइम
और हाँ-
अभी-अभी तो आया था
मिल की टूटी खिड़की से
तुम्हारी यादों का एक झोंका
रात है !...किन्तु सन्नाटा नहीं
चिल्ला रहीं हैं मिल की मशीनें
कर्णकटु...बेलगाम...जानलेवा...
और मैं, ओवर टाइम पर हूँ
अभी मैं आ नहीं सकता, तुम्हारे पास
परिस्थिति और मालिक-
दोनों ही बेरहम हैं.
बार-बार मत भेजो तुम
यादों की बैसाखी
नहीं गिरूंगा मैं...
मैं टूट नहीं सकता
मेरे साथ हैं कई हाथ
कई चेहरे!
मेरी तसल्ली के लिए
लेकिन एक दिन आऊंगा
मैं तुम्हारे पास
ज़रूर आऊंगा मैं...
मेघदूत का यक्ष नहीं हूँ
किसी दैवी शाप से बाधित नहीं हूँ
मैं तो हूँ मजदूर!
नयी सदी का...
नए युग का...
और हाँ-
अभी-अभी तो आया था
मिल की टूटी खिड़की से
तुम्हारी यादों का एक झोंका
रात है !...किन्तु सन्नाटा नहीं
चिल्ला रहीं हैं मिल की मशीनें
कर्णकटु...बेलगाम...जानलेवा...
और मैं, ओवर टाइम पर हूँ
अभी मैं आ नहीं सकता, तुम्हारे पास
परिस्थिति और मालिक-
दोनों ही बेरहम हैं.
बार-बार मत भेजो तुम
यादों की बैसाखी
नहीं गिरूंगा मैं...
मैं टूट नहीं सकता
मेरे साथ हैं कई हाथ
कई चेहरे!
मेरी तसल्ली के लिए
लेकिन एक दिन आऊंगा
मैं तुम्हारे पास
ज़रूर आऊंगा मैं...
मेघदूत का यक्ष नहीं हूँ
किसी दैवी शाप से बाधित नहीं हूँ
मैं तो हूँ मजदूर!
नयी सदी का...
नए युग का...
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
जब ख़यालों में...
जब ख़यालों में ढली ये ज़िन्दगी
एक पहेली सी लगी ये ज़िन्दगी
कौन समझा कौन समझेगा इसे
फूल-काँटों से भरी ये ज़िन्दगी
प्यास मिट जाये किसी की इसलिए
बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्दगी
कौन था जिसने संभाला हर घड़ी
लड़खड़ाई जब कभी ये ज़िन्दगी
मैं अचानक बेखु़दी में ढल गया
बारहा इतनी खली ये ज़िन्दगी
हो गये रोशन कई बुझते दिये
सोजे़-ग़म में जब जली ये ज़िन्दगी
एक हसीं हसरत की ख़ातिर दोस्तो,
रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्दगी
एक पहेली सी लगी ये ज़िन्दगी
कौन समझा कौन समझेगा इसे
फूल-काँटों से भरी ये ज़िन्दगी
प्यास मिट जाये किसी की इसलिए
बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्दगी
कौन था जिसने संभाला हर घड़ी
लड़खड़ाई जब कभी ये ज़िन्दगी
मैं अचानक बेखु़दी में ढल गया
बारहा इतनी खली ये ज़िन्दगी
हो गये रोशन कई बुझते दिये
सोजे़-ग़म में जब जली ये ज़िन्दगी
एक हसीं हसरत की ख़ातिर दोस्तो,
रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्दगी
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
रविवार, 4 अप्रैल 2010
दर्द सीने में दबे थे...
दर्द सीने में दबे थे होंठ मुसकाते रहे
हम किसी की जुस्तजू में ठोकरें खाते रहे
हम किसी की जुस्तजू में ठोकरें खाते रहे
बादलों की गोद में जब सो रही थी चांदनी
कुछ उजाले भी धुंधलकों में नज़र आते रहे
वो चला आयेगा एक दिन तोड़ के सब बंदिशें
इस तरह से रोज़ ही हम ख़ुद को समझाते रहे
एक खाली घर है यारो, शायराना दिल मेरा
लोग मेहमाँ की तरह आते रहे जाते रहे
अब भले ही वो हमें बेगाना कहता है मगर
दौर इक ऐसा भी था जब हम उसे भाते रहे
दौर इक ऐसा भी था जब हम उसे भाते रहे
रविवार, 28 मार्च 2010
नहीं चाहिए प्यार
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
देना हो तो दे दो तुम अपने आंसू दो-चार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार...
कौन है अपना,कौन पराया
कुछ भी समझ नहीं पाया
एक सत्य है यहाँ बिछुड़ना
कौन यहाँ मिलने आया
दर्दों से ही कर लूँगा मैं जीवन का श्रृंगार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
मैं न जानूँ रूप-कुरूप
गर दिल मिल जाए अनुरूप
मुझको तो आगे बढ़ना है
सावन हो या जलती धूप
जीत मिले तुमको जीवन में दे दो अपनी हार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
***
देना हो तो दे दो तुम अपने आंसू दो-चार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार...
कौन है अपना,कौन पराया
कुछ भी समझ नहीं पाया
एक सत्य है यहाँ बिछुड़ना
कौन यहाँ मिलने आया
दर्दों से ही कर लूँगा मैं जीवन का श्रृंगार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
मैं न जानूँ रूप-कुरूप
गर दिल मिल जाए अनुरूप
मुझको तो आगे बढ़ना है
सावन हो या जलती धूप
जीत मिले तुमको जीवन में दे दो अपनी हार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
***
गुरुवार, 24 दिसंबर 2009
गजलियात
शहर में अजनबी हूँ
000
मैं अकेला हूँ शहर में अजनबी हूँ
मैं अकेला हूँ शहर में अजनबी हूँ
कौन है हमदम सफ़र में अजनबी हूँ
रास्ते भी हैं कँटीले दूर मंजिल
इस दहकती रहगुज़र में अजनबी हूँ
दौर कैसा आ गया है पूछिए मत
लग रहा है अपने घर में अजनबी हूँ
टूटने लगता हूँ जब ये सोचता हूँ
क्या तुम्हारी भी नज़र में अजनबी हूँ
दस्तकें देता है दिल पर दर्द कोई
खो न जाऊँ चश्मे-तर में अजनबी हूँ
इश्क़ के ये रास्ते हैं जानलेवा
दोस्तो मैं इस डगर में अजनबी हूँ
कौन देखेगा यहां पर राह मेरी
मैं मुसाफिर हूँ शहर में अजनबी हूँ।
000
जाने क्यों तुम...
जाने क्यों तुम...
जाने क्यों तुम याद आए
कल अंधेरी रात में
जैसे कोई जुगनू चमके
सावनी बरसात में
कौन है जिससे शिकायत है मुझे
किसको खोया किसकी हसरत है मुझे
कैसा रिश्ता क्या लगन है
ऑंसुओं में क्यों जलन है
प्यार से मुझको मिला है
दर्दे-दिल सौगात में
जाने क्यों तुम...
सिलसिला बनता-बिगड़ता ही रहा
धड़कनों में कोई पलता ही रहा
क्या कहूँ क्या फैसला है
पस्त मेरा हौसला है
तुम भी शामिल हो गए हो
यादों की बारात में
जाने क्यों तुम...
ज़िन्दगी लेती रही
किस फर्ज की अंगड़ाइयॉं
क्यों शिकायत कर रही हैं
अब मेरी तनहाइयॉं
कैसे कह दूँ आग हो तुम
ज़िन्दगी का राग हो तुम
क्या भला है क्या बुरा है
अब मेरे जज़्बात में
जाने क्यों तुम...
***
सदस्यता लें
संदेश (Atom)