शहर में अजनबी हूँ
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मैं अकेला हूँ शहर में अजनबी हूँ
मैं अकेला हूँ शहर में अजनबी हूँ
कौन है हमदम सफ़र में अजनबी हूँ
रास्ते भी हैं कँटीले दूर मंजिल
इस दहकती रहगुज़र में अजनबी हूँ
दौर कैसा आ गया है पूछिए मत
लग रहा है अपने घर में अजनबी हूँ
टूटने लगता हूँ जब ये सोचता हूँ
क्या तुम्हारी भी नज़र में अजनबी हूँ
दस्तकें देता है दिल पर दर्द कोई
खो न जाऊँ चश्मे-तर में अजनबी हूँ
इश्क़ के ये रास्ते हैं जानलेवा
दोस्तो मैं इस डगर में अजनबी हूँ
कौन देखेगा यहां पर राह मेरी
मैं मुसाफिर हूँ शहर में अजनबी हूँ।
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जाने क्यों तुम...
जाने क्यों तुम...
जाने क्यों तुम याद आए
कल अंधेरी रात में
जैसे कोई जुगनू चमके
सावनी बरसात में
कौन है जिससे शिकायत है मुझे
किसको खोया किसकी हसरत है मुझे
कैसा रिश्ता क्या लगन है
ऑंसुओं में क्यों जलन है
प्यार से मुझको मिला है
दर्दे-दिल सौगात में
जाने क्यों तुम...
सिलसिला बनता-बिगड़ता ही रहा
धड़कनों में कोई पलता ही रहा
क्या कहूँ क्या फैसला है
पस्त मेरा हौसला है
तुम भी शामिल हो गए हो
यादों की बारात में
जाने क्यों तुम...
ज़िन्दगी लेती रही
किस फर्ज की अंगड़ाइयॉं
क्यों शिकायत कर रही हैं
अब मेरी तनहाइयॉं
कैसे कह दूँ आग हो तुम
ज़िन्दगी का राग हो तुम
क्या भला है क्या बुरा है
अब मेरे जज़्बात में
जाने क्यों तुम...
***
बढिया गज़ले है त्रिपाठी जी ब्लॉग पर कुछ कुछ लिख्ते रहिये ।
जवाब देंहटाएंyun ही idhar chli aayi thi तो ये shandaar ग़ज़ल nazar aa gayi ......
जवाब देंहटाएंटूटने लगता हूँ जब ये सोचता हूँ
क्या तुम्हारी भी नज़र में अजनबी हूँ
बहुत खूब .....!!
इश्क़ के ये रास्ते हैं जानलेवा
दोस्तो मैं इस डगर में अजनबी हूँ
ishq के रास्तों से कौन अंजान रहा है भला ......?
मैंने ऊपर की ग़ज़ल देखी थी सिर्फ ....टिप्पणी करने लगी तो देखा आपने तो पूरा संकलन एक साथ दी दल दिया है एक-एक कर पढवाते तो अच्छा था .......!!
दल का डाल पढ़ें ....!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..बढ़िया है.
जवाब देंहटाएं----------------------
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