सोमवार, 12 अप्रैल 2010

     नजरें झुकाये मिले

मिले भी तो नज़रें झुकाये मिले 
कोई   राज़  दिल   में छुपाये मिले 

बढ़ा     दीं    मेरी    और    बेचैनियां 
लबों  पर तबस्‍सुम सजाए मिले

न जाने मैं किस शहर में आ गया 
    अपने   मिले        पराए   मिले 

हुईं   कोशिशें    भूलने     की     मगर  
 ख़यालों पे  अक्‍सर वो छाए मिले 

हसीं  और  आंसू  का  संगम रहा 
ख़ुशी  पर ग़मों के भी साये मिले
                      

1 टिप्पणी:

  1. ख़यालों पे अक्‍सर वो छाए मिले !!!
    vo koun hai jo aapki gazlon ko sjati hai ! sundr rchna badhai !

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