बुधवार, 21 अप्रैल 2010

जब ख़यालों में...

जब ख़यालों में ढली ये ज़िन्‍दगी 
एक पहेली सी  लगी ये ज़िन्‍दगी 

कौन समझा कौन समझेगा इसे 
फूल-काँटों   से  भरी  ये ज़िन्‍दगी 

प्‍यास मिट जाये किसी की इसलिए 
बर्फ  सी  हरदम  गली  ये  ज़िन्‍दगी

कौन था जिसने संभाला हर घड़ी 
लड़खड़ाई जब  कभी ये ज़िन्‍दगी 

मैं अचानक बेखु़दी में ढल गया 
बारहा इतनी  खली ये ज़िन्‍दगी

हो  गये  रोशन   कई   बुझते   दिये 
सोजे़-ग़म में जब जली ये ज़िन्‍दगी

एक  हसीं  हसरत  की ख़ातिर दोस्‍तो
रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्‍दगी

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्‍यास मिट जाये किसी की इसलिए
    बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्‍दगी !!!
    वाह ! लक्ष्मी कान्त जी ! आपतो हर नज्म में जान डाल देते हैं !आज के बेरहम मौसम में दुआ की तरह ये पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं ! बधाई स्वीकारें !

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  2. बहुत बेहतरीन पंक्तियां।

    एक हसीं हसरत की ख़ातिर दोस्‍तो,
    रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्‍दगी

    इन लाईनों नें तो गजब ही ढा दिया भाई।

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  3. "प्‍यास मिट जाये किसी की इसलिए
    बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्‍दगी"
    नाजुक भावों और अहसासों से रूबरू कराती लाजवाब रचना के लिए बधाई

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  4. एक हसीं हसरत की ख़ातिर दोस्‍तो,
    रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्‍दगी
    बढ़िया

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  5. मनभावन रचना, दिल को छू जाने वाली रचना,
    अति सुन्दर, सटिक, एक दम दिल कि आवाज.
    कितनी बार सोचता हु कि इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है.
    अपनी ढेरों शुभकामनाओ के साथ
    shashi kant singh
    www.shashiksrm.blogspot.com

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  7. प्‍यास मिट जाये किसी की इसलिए
    बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्‍दगी

    वाह बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...मेरी दाद कबूल करें...
    नीरज

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