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शहर में अजनबी हूँ
गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012
आदमी जो देता है, वही पाता है
आदमी जो बोता है, वही काटता है
तुमने क्या दिया ? तुमने क्या पाया ?
तुमने क्या बोया ? तुमने क्या काटा ?
कभी सोचा ?
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लक्ष्मीकांत त्रिपाठी
न ऐसा हूँ, न वैसा हूँ, मैं बिल्कुल आप जैसा हूँ।
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