ओवर टाइम
और हाँ-
अभी-अभी तो आया था
मिल की टूटी खिड़की से
तुम्हारी यादों का एक झोंका
रात है !...किन्तु सन्नाटा नहीं
चिल्ला रहीं हैं मिल की मशीनें
कर्णकटु...बेलगाम...जानलेवा...
और मैं, ओवर टाइम पर हूँ
अभी मैं आ नहीं सकता, तुम्हारे पास
परिस्थिति और मालिक-
दोनों ही बेरहम हैं.
बार-बार मत भेजो तुम
यादों की बैसाखी
नहीं गिरूंगा मैं...
मैं टूट नहीं सकता
मेरे साथ हैं कई हाथ
कई चेहरे!
मेरी तसल्ली के लिए
लेकिन एक दिन आऊंगा
मैं तुम्हारे पास
ज़रूर आऊंगा मैं...
मेघदूत का यक्ष नहीं हूँ
किसी दैवी शाप से बाधित नहीं हूँ
मैं तो हूँ मजदूर!
नयी सदी का...
नए युग का...
मंगलवार, 8 जून 2010
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
जब ख़यालों में...
जब ख़यालों में ढली ये ज़िन्दगी
एक पहेली सी लगी ये ज़िन्दगी
कौन समझा कौन समझेगा इसे
फूल-काँटों से भरी ये ज़िन्दगी
प्यास मिट जाये किसी की इसलिए
बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्दगी
कौन था जिसने संभाला हर घड़ी
लड़खड़ाई जब कभी ये ज़िन्दगी
मैं अचानक बेखु़दी में ढल गया
बारहा इतनी खली ये ज़िन्दगी
हो गये रोशन कई बुझते दिये
सोजे़-ग़म में जब जली ये ज़िन्दगी
एक हसीं हसरत की ख़ातिर दोस्तो,
रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्दगी
एक पहेली सी लगी ये ज़िन्दगी
कौन समझा कौन समझेगा इसे
फूल-काँटों से भरी ये ज़िन्दगी
प्यास मिट जाये किसी की इसलिए
बर्फ सी हरदम गली ये ज़िन्दगी
कौन था जिसने संभाला हर घड़ी
लड़खड़ाई जब कभी ये ज़िन्दगी
मैं अचानक बेखु़दी में ढल गया
बारहा इतनी खली ये ज़िन्दगी
हो गये रोशन कई बुझते दिये
सोजे़-ग़म में जब जली ये ज़िन्दगी
एक हसीं हसरत की ख़ातिर दोस्तो,
रात भर तिल-तिल जली ये ज़िन्दगी
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
रविवार, 4 अप्रैल 2010
दर्द सीने में दबे थे...
दर्द सीने में दबे थे होंठ मुसकाते रहे
हम किसी की जुस्तजू में ठोकरें खाते रहे
हम किसी की जुस्तजू में ठोकरें खाते रहे
बादलों की गोद में जब सो रही थी चांदनी
कुछ उजाले भी धुंधलकों में नज़र आते रहे
वो चला आयेगा एक दिन तोड़ के सब बंदिशें
इस तरह से रोज़ ही हम ख़ुद को समझाते रहे
एक खाली घर है यारो, शायराना दिल मेरा
लोग मेहमाँ की तरह आते रहे जाते रहे
अब भले ही वो हमें बेगाना कहता है मगर
दौर इक ऐसा भी था जब हम उसे भाते रहे
दौर इक ऐसा भी था जब हम उसे भाते रहे
रविवार, 28 मार्च 2010
नहीं चाहिए प्यार
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
देना हो तो दे दो तुम अपने आंसू दो-चार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार...
कौन है अपना,कौन पराया
कुछ भी समझ नहीं पाया
एक सत्य है यहाँ बिछुड़ना
कौन यहाँ मिलने आया
दर्दों से ही कर लूँगा मैं जीवन का श्रृंगार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
मैं न जानूँ रूप-कुरूप
गर दिल मिल जाए अनुरूप
मुझको तो आगे बढ़ना है
सावन हो या जलती धूप
जीत मिले तुमको जीवन में दे दो अपनी हार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
***
देना हो तो दे दो तुम अपने आंसू दो-चार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार...
कौन है अपना,कौन पराया
कुछ भी समझ नहीं पाया
एक सत्य है यहाँ बिछुड़ना
कौन यहाँ मिलने आया
दर्दों से ही कर लूँगा मैं जीवन का श्रृंगार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
मैं न जानूँ रूप-कुरूप
गर दिल मिल जाए अनुरूप
मुझको तो आगे बढ़ना है
सावन हो या जलती धूप
जीत मिले तुमको जीवन में दे दो अपनी हार।
मुझे नहीं चाहिए प्यार!
***
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