दर्द सीने में दबे थे...
दर्द सीने में दबे थे होंठ मुसकाते रहे
हम किसी की जुस्तजू में ठोकरें खाते रहे
हम किसी की जुस्तजू में ठोकरें खाते रहे
बादलों की गोद में जब सो रही थी चांदनी
कुछ उजाले भी धुंधलकों में नज़र आते रहे
वो चला आयेगा एक दिन तोड़ के सब बंदिशें
इस तरह से रोज़ ही हम ख़ुद को समझाते रहे
एक खाली घर है यारो, शायराना दिल मेरा
लोग मेहमाँ की तरह आते रहे जाते रहे
अब भले ही वो हमें बेगाना कहता है मगर
दौर इक ऐसा भी था जब हम उसे भाते रहे
दौर इक ऐसा भी था जब हम उसे भाते रहे
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